अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।
दिल की आरजु कि एक बार मिलुॅ तुमसे
जिदां हुॅ मैं, तुम्हें बताना चाहता हुॅ।
झड़ जाते हैं जिन दरख्तों के पत्ते पतझड़ में
आती है उनपर भी बहारें, तुम्हे दिखाना चाहता हुॅ।
टुटा था जो साज ‘ए’ दिल तेरे चले जाने से
उसमें बजती हुई जलतरंगों को तुम्हें सुनाना चाहता हुॅ।
अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब ..सकारात्मक सोच लिए अच्छी गज़ल
ReplyDeleteजीने के लिए यह सब जरुरी है बहुत उम्दा अशआर, बधाई
ReplyDeleteसकारात्मक सोच बहुत जरुरी है - अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव हैं.. बधाई.
ReplyDeletebhut hi bhaavpur rachna...
ReplyDeleteकल 29/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
ReplyDeleteआपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
वाह अमित भाई , ये नजरिया भी जरूरी है
ReplyDeleteदिल से
ReplyDeleteman ko jeet lene ka bhav....bahut khub
ReplyDeleteटुटा था जो साज ‘ए’ दिल तेरे चले जाने से
ReplyDeleteउसमें बजती हुई जलतरंगों को तुम्हें सुनाना चाहता हूं
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।
एक उम्दा रचना ..
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)
अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
ReplyDeleteतेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ..
यूँ मुस्कुराना वो भी उनके बगैर ... बहुत मुश्किल है ...
कविता में कमाल के तेवर हैं ..
वाह...बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteअनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
ReplyDeleteतेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।
बहुत सुंदर गज़ल ...इसे मै अपनी फेसबुक पर डाल रही हूँ
आपकी कविता की प्रशंसा के लिए सही में शब्द नही हैं हमारे पास !
ReplyDelete...बहुत सुंदर कविता है आपकी...और आपकी फोटो से मिलता संदेश भी .....
टुटा था जो साज ‘ए’ दिल तेरे चले जाने से
ReplyDeleteउसमें बजती हुई जलतरंगों को तुम्हें सुनाना चाहता हुॅ।
sunder satye ko ujagar karti prabhavshali prastuti.
बहुत खूब........शानदार ग़ज़ल है |
ReplyDeletevery beautiful lines really ;) :)
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