कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।
कभी खुशियों के बादल पर उड़ाती है तो
कभी गम के सागर में डुबाती है जिन्दगी।
कभी अपनों को दुर करती है तो
कभी गैरों को अपना बनाती है जिन्दगी।
कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।
कहीं तन्हाई में खुद पर शर्माती है तो
कहीं महफिल में जाम टकराती है जिन्दगी।
कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।
बहुत ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteसही और बहुत खूब
ReplyDeleteजिन्दगी की अपनी ही धारा है ...जो बहती ही रहगी ......आभार
ReplyDeleteइसी को ज़िंदगी कहते है अमित जी , बहुत खूब ....
ReplyDeleteBahut khoobsurat post, badhai
ReplyDeleteखुबसूरत रचना
ReplyDeleteजिंदगी इसी का नाम है
बहुत बढ़िया सर.
ReplyDeleteसादर
जिंदगी के रंगों को बखूबी उकेरा है........सब नज़रिए की बात है ......शानदार |
ReplyDeleteपोस्ट के साथ की तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी|
bahut sahi
ReplyDeleteकभी अपनों को दुर करती है तो
ReplyDeleteकभी गैरों को अपना बनाती है जिन्दगी।
कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।
सटीक बात कहती गज़ल
बहुत खूब बाँधा है जिंदगी को आपने ... अपने ही अलफ़ाज़ में ...
ReplyDeleteकभी खुशियों के बादल पर उड़ाती है तो
ReplyDeleteकभी गम के सागर में डुबाती है जिन्दगी।
खूब ... यही तो उहापोह है ज़िन्दगी की....
कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
ReplyDeleteकहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।
कहीं तन्हाई में खुद पर शर्माती है तो
कहीं महफिल में जाम टकराती है जिन्दगी।
बहुत खूबसूरत....
बहुत खूबसूरत.... सटीक गज़ल
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और सटीक गज़ल..
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना...
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