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Monday, July 18, 2011

एक आम आदमी की मौत........


चित्र गुगल साभार





आम इंसान कितना बेबस और नीरीह हो गया है। हर रोज तिल तिल कर मरता है। फिर भी जीने के लिए रोज नए नए समझौते करता है। चारो तरफ से गिद्ध दृष्टि उस पर पड़ी हुई है। डरता है, संभलता है फिर भी हर रोज चलता है। दिन आतंक के साये में गुजरता है और रात इस सोच में कि कल क्या होगा और उपर वाले का शुक्रिया अदा करता है आज किसी तरह निकल गया। पर बकरे की माॅ कब तक खैर मनाएगी। किसी न किसी रोज तो उॅट पहाड़ के नीचे आएगा ही। अगर आंतकी हमले से बच निकले तो सरकार जिंदा नही छोड़ेगी। इनके पास वैसे बहुत से हथियार है लोगों को मारने के लिए। पर अभी सरकार जिस हथियार का इस्तेमाल कर रही है वो है महगाॅई। ये ब्रह्मास्त्र है और इसका वार कभी खाली नही जाता। इसके जरिये सरकार आराम से धीरे धीरे लोगो का खुन चुस रही है।  अब चाहे कोई लाख चिल्लाए, चाहे कितना भी तड़फड़ाए क्या फर्क पड़ता है, मरना तो है ही।  वैसे देखा जाए तो हमें आतंकवादियों का शुक्रिया अदा करना चाहिए। कम से कम वो लोग हमें इतना तड़पाते तो नही है। बस एक धमाका और सबकुछ खत्म। परिवार वालों को भी आसानी होती है और पैसे बच जाते है। अब देखिए, अगर ऐसे मरे तो लाश को जलाओ, उसके लिए लकडि़याॅ खरीदो और भी तरह तरह के कर्मकांड। बम धमाके में मरने के बाद हमारे शरीर का ही पता नही चलता। सारे अगं अलग अलग और यहाॅ वहाॅ बिखरे हुए, तो जलाने का टेंशन खत्म। मीडिया में भी नाम आ जाता है। लोग मरने के बाद ही सही कम से कम जानते तो है कि इस नाम का कोई इंसान भी था। ऐसे मरने पर तो दस घर के बाद ग्यारहवाॅ घर जान भी नहीं पाता कि अमुक बाबु दुनिया में नही रहे। और तो और, वैसे मरने के बाद जहाॅ शरीर का कोई महत्व नही रहता। बम धमाके में मरने के बाद उसी मुर्दा शरीर का वैल्यु लाखों का हो जाता है। घर वाले भी खुश। सोचते हैं- चलो, जीते जी तो कुछ नहीं कर पाया मरने के बाद कुछ काम तो आया। वैसे भी हमारे रहनुमा ये खुलेआम कह चुके हैं कि हम आपकी सुरक्षा करने में असमर्थ है तो हम उनके द्वारा फैलाए चक्रव्युह में फॅस कर क्यों तिल तिल कर मरें। जब मरना ही है तो उस तरह क्यों न मरें जिससे कोई फायदा तो हो। तो जनाब, मैं भी बेकार और निठल्ला आदमी हुॅ। अब मैं भी कोई आतंकवादी खोज रहा हुॅ। अगर मिल गया तो पुछुगाॅ कि भाई अगली बार कहाॅ पर ब्लास्ट कर रहे हो, मुझे बता दो ताकि मेरा मरना कुछ काम तो आए। 

24 comments:

  1. बात तो सही है अमित जी लेकिन ये मंजूर नहीं - बिलकुल नहीं

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  2. ज़िंदगी से कुछ हासिल नहीं ..कम से कम मौत का लाभ कमाया जाये ... संवेदनशील पोस्ट

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  3. आपकी इन बातों के यह नहीं समझेंगे , कोशिश कीजिये शान से ज़िन्दा रहने की ...

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  4. इन बातों को समझना चाहिए अमित जी

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  5. सही बात कही है आपने....

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  6. आज 19- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  7. बाज़ार वाद को परिलक्षित करती एक अनूठी प्रस्तुति...मरने में भी नफ़ा नुक्सान देखते हैं ...सही है..!!

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  8. बेहद प्रभावशाली और सटीक पोस्ट्।

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  9. बहुत ही संवेदनशील पोस्ट....

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  10. आज के हालात का व्यंग के जरिये सुंदर प्रस्तुतिकरण्……आभार|

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  11. कटे सत्य पर शानदार व्यंग्य,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  12. अमित जी ,
    तल्ख़ सच्चाई है आपका लेख ......बहुत दर्द भरा है कथ्य में
    किन्तु आशा और संघर्ष पर यकीन करें तो शायद बेहतर होगा

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  13. आशा ही जीवन है

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  14. बहुत सटीक लिखा है सर ।

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  15. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...बधाई प्रस्‍तुति।

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  16. आम आदमी इतना बेबस हो गया है ...टूट त्तोत कर जुड रहा है ....बहुत ही भावुक रचना

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  17. अमित जी बहुत ही अच्छा व्यंग्य है। वैसे महँगाई को ही मारना ज्यादा उचित है।

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  18. सच कहा आपने...
    गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....

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  19. कल 02/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  20. सहमत हूँ आपसे....

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  21. jeewan bahumuly hai..aisa mat sochiye...sochiye hiran agar kabhi apne jhund me is baat ko pracharit dn kee sher ko jab dekho to apne seeng sher kee taraf karke sab ek sath daud kpado...dekhyaga sher bhag jayega..ham jab tak bhagenge aasaan shikar honge ..ham jis din thahar jaayenge dusman ke hausle past kar denge,,,,apni lekni kee mashal jalaye rakhein...sangthan ko mjboot banayein..aaur taiykarri karin mukable kee...sadar badhayee...holi kee shubhkamnaon aaur amantran ke sath

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