चित्र गूगल साभार
आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।
कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
हम कितनी मुद्धत बाद मिले हैं।
आओ भुला दें हम सभी
दिल में जितने शिकवे गिले है।
कुछ इस तरह रातें बिताई है मैनें
जागती ऑखों से सपने बुने हैं।
चॉदनी रातों में जाग कर हमनें
ना जाने कितने तारे गिने है।
आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।
आज फिर महका है गुलिस्तॉ
ReplyDeleteऔर चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।
वाह
बेहतरीन जज्बात को पेश किया आपने अमित भाई
शुभकामनाये
ऑखें सबकुछ बोल रही है
ReplyDeleteहम दोनों के होठ सिले है।
सुंदर रचना ।
bahut sundar....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
सुंदर भावों से सजी भावमयी रचना... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteऑखें सबकुछ बोल रही है
ReplyDeleteहम दोनों के होठ सिले है।
सुंदर भाव... सुंदर रचना...
ek umda kavita
ReplyDeleteसही कहा आपने , कई बार ऐसा होता है कि जब हम एक लम्बे अरसे के बाद किसी से खासकर किसी अपने से मिलते है तो हमारे पास बातें तो बहुत सी होती है लेकिन शब्द कम पड जाते है और बात का स्थान मौन ले लेता है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अहसास...कभी कभी मौन ही सबसे बड़ी अभिव्यक्ति बन् जाता है...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुभानाल्लाह..........बहुत खूब......ये गुलिस्तां यूँ ही महकता रहे |
ReplyDeleteखूबसूरती से उकेरा है आपने
ReplyDeleteसुन्दर प्रेमगीत
ReplyDeletewahh..
ReplyDeleteati sundar or pyarbhari rachana hai....
" अपनी ऑखों को समझाओ जान न जाए दुनियाँ सारी । बैन नैन से नैन न करे जल जाएगी दुनियाँ सारी ।"
ReplyDelete