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Thursday, February 3, 2011

जज्बा


कल जब मैने ये रचना डाली थी तो कुछ यांत्रिक गड़बड़ी के कारण कुछ लोगों के कम्प्युटर पर आ रही थी और कुछ लोगों के कम्प्युटर पर नहीं। इसलिए आज मैंने इसे फिर से पोस्ट किया है।



वो इन्सॉ ही क्या जिसमें
मुश्किलो से लड़ने का जज्बा न हो
लहरें फिर से वापस आती है
पत्थरों से टकराने के बाद।

कबतक रोकेगी रास्ता सच का
ये झुठ और फरेब की दीवारें
बड़े शान से निकलता है सुरज
हर घने कोहरे के बाद।

मंजिले भी सर झुकाती है
बुलदं इरादों के आगे ‘अमित’
रस्सीयॉ भी छोड़ जाती है निशान
पत्थरों पर आने जाने के बाद।

Friday, January 28, 2011

शहर


आजकल कुछ ज्यादा व्यस्त हुॅ। यही वजह है कि आप लोगों की रचना नहीं पढ़ पा रहा हुॅ। कुछ दिनों के बाद आप लोगों के साथ फिर से जुड़ता हुॅ तब तक के लिए अपनी एक पुरानी पोस्ट को आप लोगों के पास छोड़े जा रहा हॅु। 



ऊँचे-ऊँचे बने हुए घरों और महलों के,
शहर में आकर न जाने कैसे खो गए हम।
मिल सका न हमसे एक घर,
इसलिए फुटपाथ पे ही सो गए हम।
आधी रात को एक गाड़ी आई और
उसमें से कुछ लोग निकल आए।
बोले हमसे, फुटपाथ पे सोते हो
कुछ ना कुछ तो लेंगे हम,
और वो सारा सामान लेकर चले गए
उन्हें खडे़ बस देखते रहे हम।
सुबह लोगांे की नजरों से बचता हुआ
चला जा रहा था स्टेशन की ओर,
कि कुछ पुलिस वाले आए और
पकड़ कर ले गए थाने।
बोले सर, आतंकवादी को
पकड़ कर ले आए हम।
इतना सब होने के बाद
बस एक ही है गम।
मैं क्यों गया उस ओर,
जहाँ कोई इन्सां रहता नहीं
चारों तरफ दहशतगर्दी और लूटमार है।
लोग गाँवों को कहते हैं,
मैं कहता हूँ ये शहर ही बेकार है।

Sunday, January 23, 2011

280 लाख करोड़ का सवाल है ...


भारतीय गरीब है लेकिन भारत कभी गरीब नहीं रहा। ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का। स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रूपये नके स्विस बैंक में जमा है। ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है या यूॅ कहे कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिये जा सकते है या यॅू भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गॉव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है। ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है। ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रूपये हर महीने भी दिये जाए तो 60 साल तक खत्म ना हो। यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने की कोई जरूरत नहीं है। जरा सोचिए हमारे भ्रष्ट  राजनेताओं और नौकरशाहो  ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक बदस्तूर जारी है। उस लिसिले को अ रोकना बहुत ज्यादा परूरी हो गया है। अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालों तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रूप्ये की लूट की मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रष्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है। एक तरफ 200साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है। यानि हर साल लगभग4.37 लाख करोड़ या हर महीने करीब 36 हजार करोड़। भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है। भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नही है। सोचो कि कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्चाधिकारियों ने ब्लाक कर रखा है। और उपर से यह कि हमारे प्रधानमंत्री ऐसे लोगों का नाम उजागर नहीं करना चाहते है। आखिर क्यों। ये पैसे किसी के किसी के खेतों में नहीं पैदा हुए है। ये जनता की खुन पसीने की कमाई जिसे इन हरामखोरों ने रोक रखा है। आज जहॉ आम जनता महगॉई के मार से त्रस्त है। किसी के थाली में रोटी है तो दाल नहीं है, तो किसी में सब्जी नहीं है और कोई भुखे पेट सोने को मजबुर है। कभी आटा महगॉ तो कभी दाल, कभी चीनी महॅगी तो कभी तेल। ये सरकार तो कसाई से भी गई गुजरी है। कसाई जब बकरे को हलाल करता है तो तुरत ही उसका गर्दन धड़ से अलग कर देता है। पर यहॉ तो लोग तिल तिल कर मरने को मजबुर है। हद हो गई है अराजकता की। चंद दिनों के बाद गणतंत्र दिवस है। लोग आएगें लाल किले पर झडां फहराएगें। दो चार भाषणों का दौर होगा और उसके बाद सब खत्म। अंग्रेजों ने जब 200 सालों में 1 लाख करोड़ रूप्ये लूटे तो हमने उनके खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया। अब एक बार फिर से वक्त आ गया है कि एक और क्रांति का आगाज हो और सारे पैसे भारत वापस लाए जाये और उन्हें भारत एवं उसकी जनता की भलाई एवं समृद्धी में खर्च किये जाए एवं उन सभी भ्रष्ट लोगो के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए तभी सही मायने में हम स्वतंत्र होगें। आइए इसे एक आंदोलन का रूप दे।

सदियों की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी 
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो
सिहासन खाली करो की जनता आती है।

जनता? हां वही मिट्टी की अबोध मुर्ति, वही जाड़े पाले की कसक सदा सहने वाली। जागों और छीन लो अपना अधिकार जिस पर कुछ लोग अजगर की तरह कुडंली मारकर बैठे हुए है।

यह आलेख मुझे मेल से मिला था जिसमें कुछ फेर बदल कर मैनें पोस्ट किया है। आप अपने बहुमुल्य सुझावों से अवगत कराए।

  

Wednesday, January 19, 2011

याद




याद आता है मुझे
तेरे साथ गुजरा वो जमाना।
तुम्हारा हॅसना, मुस्कुराना
छोटी-छोटी बातों पर 
तुम्हारा रूठ जाना।

याद आता है मुझे
तेरे साथ गुजरा वो जमाना।
वो पहली बार
मेरे हाथों को चुमना
और फिर मुझे देखकर
अपनी नजरें चुराना।

याद आता है मुझे
तेरे साथ गुजरा वो जमाना।
तेरी याद में रातों को जागना
और चॉद में
तेरा बिंब तलाशना।

याद आता है मुझे 
तेरे साथ गुजरा वो जमाना।
देखकर मुझे अपने सामने
शर्म से नजरें झुकाना
दिल का बेजार धड़कना और
लरजते होठों का कंपकपाना।
याद आता है मुझे 
तेरे साथ गुजरा वो जमाना।

Wednesday, January 12, 2011

तेरे वफा की कसमें खाते थे कभी हम

चित्र गुगल साभार


तेरे वफा की कसमें खाते थे कभी हम
तेरी जफा से आज जार जार रो रहे है।

पत्थर की दुनिया में पत्थर के लोग होते है
पत्थरों के बुत में हम वफा खोज रहे है।

जब प्यार किया तुमसे तो समझ आया हमें
अपनी राहों में हम खुद ही कॉटें बो रहे है।

अब और न परेशॉ करो मेरी कब्र पे आकर
टुटे दिल को समेटकर हम आराम से सो रहे है।



Friday, January 7, 2011

प्यार
प्यार एक ऐसा शब्द जो जानता है सिर्फ देना
जिसमें कोई सौदा नहीं और ना ही किसी से कुछ लेना।

तुम बताओ जरा क्या दे सकती हो सूरज को रोशनी के बदले में
तुम्हें शायद नहीं पता क्या मजा है धीरे-धीरे जलने में।

चाँद की शीतल चाँदनी बिना कुछ लिए धरा पर उतरती है
दरख्तों की ठंडी छाँव बिना कुछ कहे हौले-हौले बिखरती है।

हवाओं का क्या मोल दिया है तुमने जीने के लिए
ये तो अनवरत बहती है फकत देने के लिए।

तुमने पूछा था मुझसे एक दिन के प्यार एकतरफा नहीं होता है
जो भी उतरता है इस दरिया में वो कुछ पाता नहीं सिर्फ खोता है!

Sunday, January 2, 2011

आज फिर उनके रूख पे नकाब नहीं है

कुछ दिनों के लिए मैं बाहर चला गया था इसलिए आप लोगो से दूर हो गया था। यही वजह थी कि आपलोगों की रचनाओं को नहीं पढ़ सका। इसके लिए आपलोगों से क्षमाप्रार्थी हुॅ।
चित्र गुगल साभार


आज फिर किसी का कत्ल होगा शायद
आज फिर उनके रूख पे नकाब नहीं है।

हैं मुज़्तरिब वो कि उनका कोई रक़ीब नहीं
आखिर इन्सॉं है वो कोई माहताब नहीं है।

न गुजरेगें हम कभी कू ए यार से लिल्लाह
रहजन है वो दिल का कोई पासबॉं नही है।

क्यों करता है खुद को तबाहो बर्बाद ‘अमित’
खुदा के पास भी उनकी बेवफाई का जबाब नहीं है।