चित्र गुगल साभार
तेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।
न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
गैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है।
समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।
कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।
बहुत ही सुन्दर रचना. शुभकामनाएं
ReplyDeleteसच कहूँ तो सुन्दर, "न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
ReplyDeleteगैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है"
आपकी रचना का बेसब्री से इन्तजार रहता है, शायद "थोड़ी जान बाकी है मुझमें"
काफी अंतराल दे देते हैं, आपकी कमी खलती है.
पुनः साधुवाद.
अमित जी, अन्यथा नहीं लें, आपके कमेन्ट अंग्रेजी में होते हैं,
ReplyDeleteकृपया इसे प्रयोग में लावें
http://www.google.com/ime/transliteration/
select Hindi in Google IME language and then install it,
it works on "alt+shift".
arvindjangid@rocketmail.com
कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
ReplyDeleteदेख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।
जबरदस्त शेर कही
वाह वाह
हृदिक शुभकामनाये
समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
ReplyDeleteजिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।
sunder chitra ke sath behatareen gazal....
अच्छी गज़ल ....पर लग रहा है कि पहले भी कहीं पढ़ी है
ReplyDeleteऐसा ही होता है । जिन पर हम ज्यादा यकीन करते हैं , वही हमें निराश करते हैं।
ReplyDeleteजमीर जी, अरविन्द जी, उपेन्द्र जी, दिपक जी आप सभी का शुक्रिया।
ReplyDeleteअरविन्द जी आपकी नसीहत का मैं ख्याल रखुगॉं। शुक्रिया।
संगीता जी और जील जी आपकी टिपण्णी के लिए आभार। संगीता जी अभी मैंने अपने ब्लाग में जितनी भी रचनाएंं डाली है वे सारी मौलिक एवं पुर्ण रूप से काल्पनिक है तथा ये सारी मेरे द्वारा लिखी गई है। इन सभी रचनाओं का किसी दूसरे रचनाओं से कुछ लेना देना नहीं है। और अगर ऐसा होता है तो यह महज एक इत्तफाक ही होगा।
ReplyDeletesadhu
ReplyDeleteतेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
ReplyDeleteहर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।
क्या मतला है इसे कहते है इश्क का सुरूर..बहुत अच्छी गज़ल
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
'har chehre me tera chehra nazar aya hai'
ReplyDeleteyahi to chahat ki had hai !
मुहब्बत में इन्हीं मर्हलों से गुज़रना पड़ता है
ReplyDeleteआपका ये शेर अच्छा लगा:-
"समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है"
किसी का एक शेर याद आ रहा है:-
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे,
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
जब अपने ही दर्द दें तो किससे कहें - बहुत खूब
ReplyDeleteकत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
ReplyDeleteदेख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।
बहुत खूबसूरत..........
बहुत ही सुन्दर रचना ।
ReplyDeletebahut sundarta se shabdo ko sajaya hai
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