इस ब्लाग की सभी रचनाओं का सर्वाधिकार सुरक्षित है। बिना आज्ञा के इसका इस्तेमाल कापीराईट एक्ट के तहत दडंनीय अपराध होगा।

Friday, April 22, 2011

एक तमन्ना..............



चित्र गुगल साभार





मेरी दुनिया में आकर मत जा
तेरे बिना मैं जी नही पाउगॉ।
तेरी जुदाई का एहसास रूलाती है मुझे
तुझसे बिछड़कर मैं तो मर जाउगॉ।
तेरे लिए शायद मैं कुछ भी नही
कैसे कहुॅ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
मेरी इबादत भी तुम हो
और तुम ही मेरे खुदा हो।
चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की
और ना ही कोई तमन्ना
कि मुझे गले से लगाओ।
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
अपनी नजरों से न हमें गिराओ।


18 comments:

  1. बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।
    क्या ख्वाहिश है आपकी, बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया......!!

    ReplyDelete
  3. प्रेम की इन्तहा.

    मेरी इबादत भी तुम हो
    और तुम ही मेरे खुदा हो।

    बहुत खूब.

    ReplyDelete
  4. बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  5. बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।

    bahut hi gahre jajbat ke sath sunder prastuti.......

    ReplyDelete
  6. बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।

    प्रेम की इन्तहा.

    ReplyDelete
  7. चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की
    और ना ही कोई तमन्ना
    कि मुझे गले से लगाओ।
    बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।

    प्रेममयी भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. Ye prem ki interha hai ... unke saath hi jeevan ... nahi to mout ... lajawaab abhivyakti hai ..

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छे ढंग से प्रेम कि अभिव्यक्ति ...बहुत खूब अमित जी

    ReplyDelete
  10. बढ़िया प्रस्तुति ....शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  11. बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।

    बढ़िया प्रस्तुति प्रेममयी भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  12. कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

    ReplyDelete
  13. चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की
    और ना ही कोई तमन्ना
    कि मुझे गले से लगाओ।
    बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।

    ....सच्चे प्रेम का बहुत सुन्दर चित्रण...कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  14. "बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
    अपनी नजरों से न हमें गिराओ।"
    वाह जी वाह...........
    आपने बहुत सुंदर शब्दों में मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ..!
    अन्तर्मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती उम्दा रचना...

    ReplyDelete
  15. जहां चाहत जिस्म से ऊपर उठ जाए ...
    उस चाहत में रब्ब बसता है .....

    आमीन......

    ReplyDelete
  16. 'चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की

    ----------------------------

    ---------------------------

    बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी

    अपनी नज़रों से न हमें गिराओ '


    वाह अमित जी ........बहुत सुन्दर भाव ........सच्चा प्रेम तो यही है

    ReplyDelete
  17. बेहतरीन ख्वाहिश ..उम्दा ख्याल ..

    ReplyDelete