चित्र गूगल साभार
जरा देखो तो
इस दरख्त को।
कभी
इसके साथ भी
बहार थी।
उसका साथ क्या मिला
हर लम्हा
गर्व से सीना ताने
हर किसी से
लड़ता रहा।
चाहे धुप हो
या फिर
मुसलाधार बारिश
या फिर
पर्वतों का भी
सीना चीरने वाली
तेज हवाएँ।
न जाने कितने
अनगिनत परिन्दों का
बसेरा था ये।
जो भी इसके
करीब आया
उन सबको इसने
अपने सीने से लगाया।
फिर एक दिन
ना जाने
इससे क्या खता हुई
कि बहार ने
इसका साथ छोड़ दिया।
वो परिन्दे भी
जो कभी इसकी शाखों पर
रक्स किया करते थे
अपना मुँह मोड़ लिया।
अब कोई भी
इसके करीब नही आता।
सारे जमाने का
दर्द सहते हुए
ये अब भी खड़ा है
शायद
इस इतंजार में
कि कभी तो
बहार वापस आएगी
और उसके
पुराने दिन फिर से
वापस लौट आएगें।
दरख्त पर तो फिर भी बहार आने की उम्मीद होती है .. पर बूढ़े होते इंसानों का क्या ?
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
साधु-साधु
ReplyDeleteबहुत खूब ... ये बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे ... फिर से फूल कलियाँ, पंछी सभी आयेंगे ... बस होंसला साथ होना चाहिए ... अच्छी रचना है अमित जी ..
ReplyDeletebahut hi komal bhavo se likhi acchi prastuti hai....
ReplyDeleteसुंदर रचना कोमल भाव !
ReplyDeleteआभार !
मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"
सुन्दर... बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे ...
ReplyDeleteकभी न कभी बहार पुनः आएगी।
ReplyDeleteसुंदर आशावादी कविता।
sunder...prastuti
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसारे जमाने का
ReplyDeleteदर्द सहते हुए
ये अब भी खड़ा है
शायद
इस इतंजार में
कि कभी तो
बहार वापस आएगी
और उसके
पुराने दिन फिर से
वापस लौट आएगें।
bahut sundar ....asha hi jeevan hai.
सादगी भरी रचना ..... बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत सुन्दर कामना .. एहसास
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