जिस्म तो बहुत मिलते है पर यहॉं प्यार नही मिलता
हथेली पर लिए दिल खड़ा हूँ कोई खरीदार नही मिलता।
कोई तो बताए पता मुझे उस दुकान का
जो बेचता हो वफा वो दुकानदार नही मिलता।
कैसे करू यकीं तेरी वफा पर तु ही बता
इस बेवफा दुनिया में कोई वफादार नही मिलता।
सुना है वक्त ने भी फेर ली है मुझसे ऑखें
उससे बेहतर कोई राजदार नही मिलता।
अपने ही सब कर्मो का असर है ये ‘अमित’
दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता।
अमित जी, मंदी की मार का असर आपकी इस ख़ूबसूरत और लाजबाब गजल में भी दिख रहा है !:) बहुत सुन्दर प्रस्तुति, खासकर शुरू के दो शेर बहुत सुन्दर है ! दूसरे वाले शेर को मैं कुछ इस अंदाज में कहना चाहूंगा !
ReplyDeleteऐसा भी नहीं कि मैं सिर्फ अपना ही माल बेचने की जुगत में बैठा हूँ,
खरीदना चाहता हूँ अदद सी वफ़ा, कम्वख्त कोई दुकानदार नहीं मिलता ! :) :)
वधाई और आपको नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
वाह बहुत खूब......सभी शेर बढ़िया हैं|
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
bahut sundar ehsash....sarthak
ReplyDeleteसब गड़बड़ चल रहा है। नए साल से ही कुछ उम्मीद लगती है।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteमेरी नई रचना एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है
बहोत अच्छी प्रस्तुती ।
ReplyDeleteनया ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दिल से निकला वाह वाह .......
ReplyDeleteखूबसूरत गजल ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल....नववर्ष की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत... नव वर्ष की हार्दिक शुभकमनाएं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , सादर .
ReplyDeleteनूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
वाह! सुन्दर सादर बधाई और
ReplyDeleteनूतन वर्ष की सादर शुभकामनाएं
शानदार..जानदार गजल
ReplyDeleteनव वर्ष की आप सभी को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनायें। आज तो ब्लॉग जगत में गज़लें धूम मचा रही हैं। "अपने ही सब कर्मो का असर है ये ‘अमित’ दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता।" बहुत ख़ूब्।
ReplyDeleteनव-वर्ष 2012 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब... नव वर्ष की हार्दिक शुभकमनाएं...
ReplyDeleteआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुना है वक्त ने भी फेर ली है मुझसे ऑखें
ReplyDeleteउससे बेहतर कोई राजदार नही मिलता।
अच्छे भाव, अच्छी ग़ज़ल।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
bahut khub....
ReplyDeletenav varsh ki shubha kamnaye....
बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
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नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteक्या बात है....बहुत ही उम्दा गजल लगी आपकी। बधाई।
ReplyDeleteअपने ही सब कर्मो का असर है ये ‘अमित’
ReplyDeleteदैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता।
...वाह!
बहुत अच्छी ग़ज़ल ........
ReplyDeleteबधाई...
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bahut khoob gazal Amit jii .....lutf aa gaya
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