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Sunday, December 18, 2011

दरख्त........


चित्र गूगल साभार




जरा देखो तो
इस दरख्त को।
कभी
इसके साथ भी
बहार थी।
उसका साथ क्या मिला
हर लम्हा
गर्व से सीना ताने
हर किसी से
लड़ता रहा।
चाहे धुप हो
या फिर
मुसलाधार बारिश
या फिर
पर्वतों का भी
सीना चीरने वाली
तेज हवाएँ।
न जाने कितने
अनगिनत परिन्दों का
बसेरा था ये।
जो भी इसके
करीब आया
उन सबको इसने
अपने सीने से लगाया।
फिर एक दिन
ना जाने
इससे क्या खता हुई
कि बहार ने
इसका साथ छोड़ दिया।
वो परिन्दे भी
जो कभी इसकी शाखों पर
रक्स किया करते थे
अपना मुँह मोड़ लिया।
अब कोई भी
इसके करीब नही आता।
सारे जमाने का
दर्द सहते हुए
ये अब भी खड़ा है
शायद
इस इतंजार में
कि कभी तो
बहार वापस आएगी
और उसके
पुराने दिन फिर से
वापस लौट आएगें।

12 comments:

  1. दरख्त पर तो फिर भी बहार आने की उम्मीद होती है .. पर बूढ़े होते इंसानों का क्या ?
    अच्छी प्रस्तुति

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  2. बहुत खूब ... ये बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे ... फिर से फूल कलियाँ, पंछी सभी आयेंगे ... बस होंसला साथ होना चाहिए ... अच्छी रचना है अमित जी ..

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  3. सुंदर रचना कोमल भाव !

    आभार !

    मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"

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  4. सुन्दर... बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे ...

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  5. कभी न कभी बहार पुनः आएगी।
    सुंदर आशावादी कविता।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति ...

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  7. सारे जमाने का
    दर्द सहते हुए
    ये अब भी खड़ा है
    शायद
    इस इतंजार में
    कि कभी तो
    बहार वापस आएगी
    और उसके
    पुराने दिन फिर से
    वापस लौट आएगें।

    bahut sundar ....asha hi jeevan hai.

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  8. सादगी भरी रचना ..... बहार के दिन जरूर वापस आयेंगे

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  9. बहुत सुन्दर कामना .. एहसास

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