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Monday, December 24, 2012

सचिन तुझे सलाम..........

चित्र गूगल साभार





सचिन के वनडे क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा ने चौंका दिया। हॉंलाकि ये सभी जानते थे और शायद इस बात की आशा भी थी कि पाकिस्तान और अस्ट्रेलिया के भारत दौरे के बाद वो सन्यास ले सकते थे। जब सचिन ने ये पहले ही दर्शा दिया था कि वो पाकिस्तान और अस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलेगें इसके बावजूद उनका चयन नही होना वाकई हैरतअंगेज था। हरेक खिलाड़ी को एक न एक दिन जाना होता है लेकिन एक बड़े खिलाड़ी और उससे भी ज्यादा एक अच्छे इंसान का मैदान के बाहर सन्यास लेना वाकई दुखदायी है। ये हमारे देश में ही सभंव है कि जिन दो खिलाड़ियों ने हमारे देश में क्रिकेट को एक नई दिशा दी उन्हें जलालत के साथ विदा होना पड़ा। कपिल देव और सचिन जैसे खिलाड़ियों के साथ ऐसा व्यवहार क्या उचित है? सचिन का भारतीय क्रिकेट में क्या स्थान था वो अजहर और गागंुली से बेहतर कौन जान सकता है। ये वो दौर था जब भारतीय क्रिकेट सचिन के इर्द-गिर्द घूमता था। उस वक्त सचिन के विकेट पर रहने का मतलब भारत मैच में रहता था और आउट होने का मतलब भारत मैच से बाहर। सही मायने में भारत में क्रिकेट का जोश और जुनून सचिन की ही देन है। सचिन ने वास्तव में एक दशक तक भारतीय क्रिकेट को अपने कंधे पर ढोया है। पुरे विश्व में सचिन ही एकमात्र ऐसे खिलाड़ी है जिसने इतने दबाव के बावजुद इतना लबां सफर तय किया। ऐसे महान खिलाड़ी के साथ व्यवहार वाकई शर्मनाक है। सवा करोड़ भारतीयों का क्रिकेट के भगवान को सलाम एवं नम ऑंखों से विदाई।

Saturday, December 15, 2012

ये शराब है............


चित्र गूगल साभार





कातिलाना रूप इसका हुस्न लाजवाब है
देख पैमाने में कैसे बलखाती ये शराब है।

दौर-ए-महफिल हो या हो गमों की बारिशें
तश्नालब की तिश्नगी मिटाती ये शराब है।

लगता है मयकदे में हुजूम शब-ओ-रोज
मयकशों को उंगलियों पर नचाती ये शराब है।

होश में रहने दे अब और न पिला साकी
राज दिलों के सारे खोलती ये शराब है।

Tuesday, December 4, 2012

फिर तेरी कहानी याद आई.......


चित्र गूगल साभार




फिर तेरी कहानी याद आई
बीते मौसम की रवानी याद आई।

गुजारे थे हमने जो साथ मिलकर
वो शाम सुहानी याद आई।

तेरी ऑखों का सुरूर और वो मदहोश आलम
टुटी हुई चुड़ीयों की कहानी याद आई।

गुंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
वो नज्म पुरानी याद आई।

लहरों के साथ जो बह गया ‘अमित’ 
रेत पर बनी वो निशानी याद आई।

Saturday, November 17, 2012

अतीत के पन्ने .........







अतीत के पन्ने
पलटते पलटते
बहुत दूर तक निकल आया था मैं।
तस्वीरें
अब धुधंली हो गई थी।
वक्त की बारिश ने
शब्दों से जैसे
उसकी चमक छीन ली थी।
पर
उन धुधंली तस्वीरों में
एक तस्वीर
तुम्हारी भी थी।
वही मासुमियत
साँवलें चेहरे पर
सुबह की खिलती
किरणों की तरह मुस्कान।
तुम्हारे साथ गुजरा हुआ
हर लम्हा
सबकुछ तो साफ साफ था।


                                  चित्र गूगल साभार


ऐसा लगता है
जैसे
वक्त ने तुम्हे
छुआ ही न हो।
समय के
घूमते हुए चक्र से
तुम बहुत आगे
निकल गई हो।
अतीत की किताब के पन्ने
चाहे कितने भी
धुधंले क्यो न हो जाए
पर लगता है
तुम्हारा पन्ना ताउम्र
अनछुआ ही रहेगा।

Thursday, November 8, 2012

कोई यहॉ हिन्दु कोई मुसलमान रह गया


चित्र गूगल साभार





दिल में तेरी यादों का तुफान रह गया
बस्तियॉ लुट गई सारी खाली मकान रह गया।

जुल्म और नफरत से भर गई दुनिया
इन्सान अब कहॉ इन्सान रह गया।

ताउम्र ख्वाहिशों को ही जीता रहा मगर
दिल में बाकी फिर भी कुछ अरमान रह गया।

इन्सान अब रहा नहीं तेरी दुनिया में ऐ खुदा
कोई यहॉ हिन्दु कोई मुसलमान रह गया।

Monday, October 22, 2012

रावण और हम................

चित्र गूगल साभार



सुबह से ही घर में उधम मच रहा था। बच्चों ने मेला घूमने के लिए सारा घर सर पे उठा रखा था। मैं हैरान परेशान इधर-उधर घूम रहा था। सोच रहा था ‘‘इस महगॉई में ये पर्व त्योहार आखिर आते क्यों है? खैर, जैसे तैसे सबको विदा किया। 
शाम में अकेले-अकेले मैं भी टहलने निकल गया। 
थोड़ी दूर जाने पर मैनें अंधेरे में किसी को छिपते देखा। जब मैं वहॉं गया तो देखा रावण महाराज अपने दस सरों की वजह से छिपने की नाकाम कोशीश कर रहे थे। 
मैने पुछा- ये क्या महाराज! आप यहॉ क्या कर रहे हैं? आपको तो थोड़ी देर के बाद जलना है। 
वो लगभग रोते हुए बोले-भाई अब तो बस करो। सदियों से मुझे जलाते आ रहे हो। आखिर एक गलती की कितनी बार सजा दोगे। वैसे भी आजकल तुम्हारे देश में इतने रावण है कि मेरे कर्म छोटे पड़ जाए। उन्हें पकड़ो और उन्हे जलाओ। मुझे जलाने से तुम्हारा कुछ भला नहीं होगा। पर उन्हे जलाओगे तो तुम्हारे साथ-साथ पुरे देश का कल्याण हो जाएगा। एक सीता हरण का दडं तुमलोग मुझे त्रेता युग से कलियुग तक देते आ रहे हो। क्या ये उचित है? मुझे तो अपनी करनी का फल त्रेता युग में ही मिल गया था। पर तुम लोग हो कि-----। 
आज तो हर घर में, हर मोड़ पर, हर समाज में, हर इंसान में बुराई ही बुराई है। उन्हें खत्म करों और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाओ। पर तुमलोगों से ये तो होगा नही और खामखॉ हर साल मुझे बदनाम करते हुए अपनी कर्मो की सजा मुझे देते हो और खुद पाक-साफ हो जाते हो। 
तभी रामलीला वाले उन्हें ढुढॅंते हुए आए और पकड़कर ले गए खुले मैदान में। राम ने तीर में आग लगाई और चला दिया रावण की ओर। रावण धूॅ-धॅू कर जल उठा। मैदान में ठसाठस भरे हुए लोग खुश हो गए। जैसे रावण के साथ-साथ इस दुनिया की सारी बुराई जलकर राख हो गई हो। लोग वापस अपने-अपने घरों में लौट आए कल से फिर एक नया रावण बनने के लिए।

Monday, October 15, 2012


चित्र गूगल साभार





एक ही दुनिया एक है धरती एक ही है आकाश
फिर क्यों आपस में लड़कर हम खो रहे विश्वास।

मैं हिन्दु तुम मुस्लिम ये सिख वो ईसाई है
एक लहु बहता रगों में फिर कैसी जुदाई है।

ये कैसा अधर्म मचा है देखो चारो ओर
दौलत के पीछे सब अपना लगा रहे है जोर।

कौड़ी कौड़ी जमा किया पर सबकुछ छोड़ कर जाना है
रिश्ते-नाते, धन-दौलत जीने का फकत बहाना है

दुनिया में आए हो तो फिर कुछ ऐसा कर जाओ
गैरों के लिए जी लो या गैरो के लिए मर जाओ।