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Wednesday, January 25, 2012

अपने हाथों यूँ न करो र्निवस्त्र मुझे..........


कुछ दिनों से व्यस्तता की वजह से ब्लॉग से दूर हूँ जिसकी वजह से आपलोगों की रचनाओं को नहीं पढ़ पा रहा हूँ. आप लोगों के पास अपनी एक पुरानी रचना छोड़े जा रहा हूँ. इसे मैंने अगस्त महीने में ब्लॉग पर डाला था. जैसे ही समय मिलता है आप लोगो के पास वापस आ जाऊंगा. तब तक के लिए आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.



चित्र गूगल साभार 




रास्ते में मैने एक बुढ़िया को देखा बदहवास
ऑखों में था पानी और चेहरे से थी उदास।

पुछा कौन हो तुम और किसने किया तुम्हारा ये हाल
जिदंगी आगे और भी है जरा अपने आप को सभांल।

बोली बेटा अपना दर्द कैसे करू तुमसे बयान
कैसे दिखाउॅ तुम्हें अपने बदन पे जख्मों के निशान।

मेरे चाहने वाले ही मेरी हालत के जिम्मेदार हैं
कैसे कहूँ कि वो मेरे दुध के कर्जदार हैं।

मेरे बेटों ने ही मेरा ये हाल बनाया है
देखो किस तरह उन्होंने दुध का कर्ज चुकाया है।

मैने कहा चल मेरे साथ तेरा ये बेटा अभी जिंदा है
पोछ ले तु ऑंसु अपने क्यों खुद पे तु शर्मिन्दा है।

कहॉ ले जाओगे मुझे मैं एक लुटी हुई कारवॉं हूँ 
बेटा मैं और  कोई  नहीं  तेरी अपनी  ही भारत मॉं हूँ।

बख्श दो अब और न करो त्रस्त मुझे
अपने हाथों यूँ  न करो र्निवस्त्र मुझे।

Saturday, January 14, 2012

अजनबी से मोहब्बत का इजहार कर बैठे............


चित्र गूगल साभार 




अजनबी से मोहब्बत का इजहार कर बैठे
सरे राह अपनी मौत का इकरार कर बैठे।

दोस्तों की हमें कोई खबर न थी
दुश्मनों से मिले और प्यार कर बैठे।

हुआ कुछ इस कदर ये इत्फाक देखिए
नबीं को भी हम इनकार कर बैठे।

खामोश जिदंगी और अफ़सुर्दा चौबारे हैं
तन्हाई को तेरी यादों से गुलजार कर बैठे।

Saturday, January 7, 2012

मेरी दुआओं में कुछ असर तो हो........


चित्र गूगल साभार 



मेरी दुआओं में कुछ असर तो हो
जिदंगी थोड़ी ही सही बसर तो हो।

किसी के रोके कहॉ रूकते है हम
रोक ले मुझको ऐसी कोई नजर तो हो।

कितनी मुश्किलें हैं मंजिल के सफर में
सर छुपाने के लिए कोई शजर तो हो।

दस्त-ए-तन्हाई को ऑसुओं से सवॉरा है मैने
मुस्कुराहटों से भरी कभी कोई सहर तो हो।

Thursday, December 29, 2011

दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता...........




जिस्म तो  बहुत  मिलते  है  पर  यहॉं प्यार नही  मिलता
हथेली पर लिए दिल खड़ा हूँ  कोई खरीदार नही मिलता।

कोई तो बताए पता मुझे उस दुकान का 
जो बेचता हो वफा वो दुकानदार नही मिलता।

कैसे करू यकीं तेरी वफा पर तु ही बता
इस बेवफा दुनिया में कोई वफादार नही मिलता।

सुना है वक्त ने भी फेर ली है मुझसे ऑखें
उससे बेहतर कोई राजदार नही मिलता।

अपने ही सब कर्मो का असर है ये ‘अमित’
दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता।

Sunday, December 18, 2011

दरख्त........


चित्र गूगल साभार




जरा देखो तो
इस दरख्त को।
कभी
इसके साथ भी
बहार थी।
उसका साथ क्या मिला
हर लम्हा
गर्व से सीना ताने
हर किसी से
लड़ता रहा।
चाहे धुप हो
या फिर
मुसलाधार बारिश
या फिर
पर्वतों का भी
सीना चीरने वाली
तेज हवाएँ।
न जाने कितने
अनगिनत परिन्दों का
बसेरा था ये।
जो भी इसके
करीब आया
उन सबको इसने
अपने सीने से लगाया।
फिर एक दिन
ना जाने
इससे क्या खता हुई
कि बहार ने
इसका साथ छोड़ दिया।
वो परिन्दे भी
जो कभी इसकी शाखों पर
रक्स किया करते थे
अपना मुँह मोड़ लिया।
अब कोई भी
इसके करीब नही आता।
सारे जमाने का
दर्द सहते हुए
ये अब भी खड़ा है
शायद
इस इतंजार में
कि कभी तो
बहार वापस आएगी
और उसके
पुराने दिन फिर से
वापस लौट आएगें।

Saturday, December 10, 2011

ये फूल........





सुबह सुबह देखो तो 
इन फूलों की
पंखुड़ियों पर 
पानी की चंद 
नन्ही नहीं बुँदे
पड़ी होती हैं ।
तो क्या 
ये फूल भी 
किसी की याद में 
सारी रात रोती है।

Saturday, December 3, 2011

तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया


चित्र गूगल साभार 


तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया 
इस कदर मैने चाहा तुम्हें के खुद फना हो गया।

दिल पे जख्मों के निशॉं अभी बाकी है
हाथ में जाम है और सामने साकी है
इतनी पी मैनें के होश से जुदा हो गया
इस कदर मैनें चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

इश्क वो सैलाब है जो हर दिल में उठती है
साहिल भी लहरों से मिलने को मचलती है
डुबा जो इसमें उसका निशॉ तक खो गया
इस कदर मैने चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

हम भी कभी खुद पे नाज किया करते थे
न फिक्र थी कोई बस अपनी धुन में रहते थे
मिला जो तुमसे मै तो दाना से नादॉं हो गया
इस कदर मैने चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया
इस कदर मैने चाहा तुम्हें के खुद फना हो गया।