ससंद हमले की नौवी बरसी पर शहीदों को नेताओ द्वारा श्रद्धाजंली अर्पित कर इस नौटंकी की इति श्री कर दी गई। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसी लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर आज से नौ साल पहले हमला किया गया जिसमें लगभग नौ जवान शहीद हो गए। इन जवानों ने अपनी जान पर खेलकर जिन लोकतंत्र के पहरूओं की रक्षा की वही लोग आज उनके शहादत को दागदार कर रहे है। कितने शर्म की बात है कि ससंद भवन पर हमला करने वाला अफजल गुरू आज नौ साल बाद भी जिंदा है और शहीदों के परिजन उसकी फॉसी का इंतजार कर रहे है। एक खास तबके के लागों के कोपभाजन के शिकार से बचने के लिए ये लोग कितना घिनौना खेल खेल रहे है। आखिर जब हमारे देश की अदालत ने उसे फॉसी की सजा दे दी है तो क्या वजह है कि सरकार चुप है। माना कि हमारे देश में फॉसी की सजा पाए व्यक्ति को महामहीम के पास अपील करने की सहूलियत मिली हुई है लेकिन क्या ये उस लायक है कि इसकी फॉसी की सजा माफ कर दिया जाए। उसने हमारे देश की मर्यादा और उसकी अस्मिता पर हमला किया था। अगर इसे माफी मिल गई तो जरा सोचिए कि अराजक तत्वों के बीच क्या संदेश जाएगा और हमारे देश की क्या इज्जत रह जाएगी।
आप का कहना बिल्कुल सही है. आज सही मायने में हम शहीदों को भुला चुके है. उन्हें नमन.....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग सृजन_ शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
बड़ी विडम्बना है, साफ़ साफ़ शहीदों का तिरस्कार ही है. वर्तमान समय में सरकार से ये आशा करना की वो ही कोई कदम उठा पायेगी, संभव प्रतीत नहीं होता.
ReplyDeleteनेता ही आतंकवादी है....
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