चित्र गुगल साभार
एक औरत
बलात्कार की शिकार
खड़ी न्यायालय के कटघरे में
झेलने के लिए
सवालों की बौछार।
वकील ने पुछा
उससे एक सवाल
बताओ
कैसे किया उसने
तुम्हार शील भगं
कहॉं थे उसके हाथ
और कैसे उसने
तुम्हारे वस्त्र दिये थे उतार।
सुनकर ये सवाल
उस औरत के अंर्तमन में
मचा हाहाकार।
सोचा उसने
इनलोगों से बेहतर वो था
उसने जो भी किया
लोगों की निगाहों से
छुप कर किया।
पर यहॉं
लोगों की नजरों के सामने
खुलेआम
उसका हो रहा है
बलात्कार।
बड़ी विडंबना है, हमारे समाज का वीभत्स चेहरा दिखाती शशक्त रचना!
ReplyDeleteआपका साधुवाद.
यथार्थपरक बात कही गयी है |
ReplyDeleteसच्चाई बयान करती हुई बड़ी ही मार्मिक कविता है.फोटो ने तो दिल हिला दिया.
ReplyDeleteनिश्चित ही सार्थक कविता.
मेरे ब्लॉग पर नई पोस्ट लग गई है.
नंगा सच । बहुत त्रास्द स्थिती है। ऐसे समय मे वकीलों की संवेदनहीनता पर घृणा सी होने लगती है इस पेशे से। और नारी तो सदा से बेबस रही है इस समाज मे। अच्छी रचना के लिये आभार।
ReplyDeletesamaj ki is vidambana ko bakhoobhi kaha aapne shabdon men.
ReplyDeleteनंगा सच
ReplyDeletesachchai bayan karti kavita..
ReplyDeletesarahniy...
सोचा उसने
ReplyDeleteइनलोगों से बेहतर वो था
उसने जो भी किया
लोगों की निगाहों से
छुप कर किया।//
kitni mahilaaye isi dar se court nahi jaati //
बबन जी मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हु। महिलाए इस डर से कोर्ट नहीं जाती ये कहना गलत है। वो कोर्ट नहीं जाती सामाजिक बदनामी की डर की वजह से। हमलोग भी जानते है कि अमुक महिला के साथ जो भी हुआ उसमें उसका कोई दोष नही है फिर भी हमारा समाज उसे ही बदचलन कर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है और बलात्कारी आराम से घुमता रहता है। शारीरिक रूप से उसका एक बार बलात्कार होता है परन्तु हमलोग मानसिक तौर पर बार बार उसका बलात्कार करते है।
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