बचपन में जब हम स्कुल जाया करते थे तो प्रार्थना के बाद ये लाइन हमेशा बोली जाती थी तब दिल में देशप्रेम का जज्बा भर उठता था। आज भी ये बाते सोलह आने सही है। क्योंकि हमारे पुर्वजों ने हमें गर्व करने लायक बहुत सारी चीजें दी। हमारे वो महान नेता जिन्हें याद करके आज भी हमारा सर श्रद्धा से झुक जाता है। या फिर वो दिलेर और साहसी क्रांतिकारी जिन्होने हसते हसते देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी। जिनकी वजह से आज हम आजाद भारत में सॉंस ले रहे है। उनलोगों ने जो भी किया भविष्य में आने वाली नस्लों के बारे में सोच कर किया। जिसकी वजह से आज हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का हिस्सा बने हुए है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए क्या कर रहे है और क्या वे ये गर्व से कह सकेगें कि हमें गर्व है कि हम भारतीय है। आखिर हम उन्हे विरासत में गर्व करने लायक क्या देने जा रहे है भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से लिप्त देश। अराजकता एवं असहिष्णुता से भरा हुआ समाज जिसमें आज सिर्फ मैं का बोलबाला है हम का नहीे। वो हमें अवश्य याद करेगें लेकिन सृजनकर्ता के तौर पर नहीं विनाशकर्ता के रूप में। क्या हमारी आने वाली नस्ल आज के नेताओं को (यदि कुछ को छोड़ दे तो जिनकी गिनती उगॅंलियों पर हो जाएगी) वो इज्जत बख्श पाएगी जिसके हकदार महात्मा गॉंधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू आदि थे। जिन्हें जन्म लेते ही मिलावटी खाद्य पदार्थो से सामना हुआ हो अच्छे स्कुल कालेज में दाखिले के लिए डोनेशन देना पड़ा हो नौकरी करने के लिए पैसे या पहुॅच का इस्तेमाल करना पड़ा हो वो क्योंकर हमें याद करेगें। हॉं वे हमें याद करेगें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए, आर्दश घोटाले के लिए, ताबुत घोटाले के लिए, कॉमनवेल्थ घोटाले के लिए, चारा घोटाले के लिए, प्रदुषित जलवायु के लिए, सड़को पर भेड़ बकरियों की तरह बढ़ते ट्रैफिक के लिए, दंगे और फसाद के लिए। अभी भी वक्त है हम आने वाली नस्ल के लिए बहुत कुछ कर सकते है। उन्हे एक स्वस्थ और सहयोगात्मक समाज एवं हिसांरहित और भयमुक्त वातावरण में सॉंस लेने दे। उन्हे एक ऐसा देश सौपे जो प्रगति के पथ पर अग्रसर हो। जहॉं सभी के सर पर छत हो और एक इंसान भुखा नही सोता हो।
we should
ReplyDeletewe should do such deeds...so that our children can proudly say " WE ARE INDIAN "
ReplyDeleteजब से व्यक्ति का जीवन व्यक्तिगत हुआ है, समस्याए विकट होती गयीं है, देखिये प्राचीन कालीन समय में सोचने विचारने का वृहद द्रष्टिकोण सिखाया जाता था.
ReplyDeleteसच मानिये, सरकारी विभागों में बड़े स्तर पर क्या होता होगा पता नहीं लेकिन मैंने अपने कार्यालय में देखा है की सौ दो सौ रुपयों में वो लोग बिक जाते हैं जिनकी मासिक तनखाह पचास हजार है.
इसलिए भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में आवश्कताओं की पूर्ति हेतु किया गया अपराध घोषित नहीं किया जा सकता. ये तो तामसिक और भौतिकतावाद से प्रेरित समस्या है.
शायद नैतिक शिक्षा की कमी कहीं न कहीं अपना असर दिखा रही है..
आपका साधुवाद.
बहुत बढ़िया आलेख!
ReplyDelete--
अहसास को भी देवनागरी लिपि में लिख दीजिए!
इन नेताओं की नालायकी है कि किसी नेता की तस्वीर आज घर की किसी दीवार की शोभा नही बनती। और माँ बाप की नालायकी है कि बूढे होते ही उन्हें वृद्ध आश्रम की शरन लेनी पडती है। हम सब अपने कर्तव्यों से दूर जो हो गये हैं। अच्छी पोस्ट। बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख | बधाई।
ReplyDeleteये ही भ्रष्टाचार एक दिन इस कायनात को ले डूबेगी. आज का आलम ये है की हम सब सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, आने वाली नस्ल का ख्याल नहीं करते. भ्रष्टाचार की कमाई पीढ़ियों को कभी नहीं लग सकती. ऐसा करने वाले अपनी चिता सजा रहे हैं, बस उसमे आग लगने की देर है.
ReplyDeleteआज नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने की आवश्यकता है ताकि जब वे युवा हों तो सचमुच कह सकें -
ReplyDeleteहमें गर्व है कि हम भारतीय हैं।
चिंतन करने के लिए बाध्य करता आलेख।
sunder prastuti........... brastachar to deemak ki tarah desh ko chat raha hai.veecharneeya post.
ReplyDeleteअमित जी........श्रीमान को सादर प्रणाम, मैंने एक और ब्लॉग बना लिया है......आपका मार्गदर्शन यदि यहाँ भी मिले तो मुझे सतत प्रेरणा मिलेगी....ब्लाग का पता निचे दिया है.
ReplyDeletehttp://padhiye.blogspot.com
आपका धन्यवाद.
सोचने को मजबूर करती है आपकी पोस्ट ... पर आज कोई रुक कर सोच्नानाही चाहता ..
ReplyDeleteprernaprad evam chintan - yogy lekh..
ReplyDeletevishay sarthak..
नयी पीढ़ी दिशाहीन हो चुकी है । ज्यादातर युवा भटके हुए हैं। नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देती हुई सही शिक्षा ही विकल्प है।
ReplyDeleteaise aalekho ki but jroorat hai .jroor likhiye . chetna jgana ek lekhak ka sbse bda dhrm hai .
ReplyDeleteबेहतरीन चिंतन.काश लोग समझ पाते
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